Friday, January 25, 2019

अभागी कुंभकर्ण ABHAGI KUMBHKARN

         

     अभागी कुंभकर्ण.... 


शक्तिशाली, प्रभाव्शाली, विवेकपूर्ण था वो,
धर्म अधर्म में फ़सा अभाग्यशाली कुम्भकर्ण था वो,
मिली बचपन में सजा, जन्मजात विशाल था वो, 
जो इसे बर्बाद कर गया, भुख ही काल था वो 

हैरान परेशान क्या करे एक युक्ति खोज लाया,
परमब्रह्म को खुश करने तपस्या पर बैठ आया,
तपस्या हुई पुरी ब्रह्म खुश हो कर आ गये,
जिसे देना था अमृत उसे जहर दे कर आ गये,

इन्द्र की अराधना पर सरस्वती मुख पर बैठ गयी, 
इन्द्रावास की जगह निन्द्रावास कहला आयी,
अपने वाक्य बदलने से पहले प्रभु ने तथास्तु कह डाला,
नियम धर्म सब तोड़ कर मृत्युदन्ड सा दे डाला, 

रावण सब कुछ देख रहा कर विनती उसने खुब मनाया,
मृत्युदन्ड सा वरदान में एक दिन जीवित का जोड़ आया,
वो शैय्या पर लेट गया दिन दिवस फ़िर बित गया,
क्या हो रहा था उसे न कुछ ज्ञान था,
क्या होना था और क्या परिणाम था,

अतिक्रुर निर्दायी रावण अब सिते उठा लाया,
उसने अपने हाथों अपनी मृत्यु बुला लाया,
 अब जब हार गया वो सब से उसे और कुछ न सुझा,
अपने भाइ कुम्भकर्ण को उसने राम से बलशाली बुझा,

जा उठा ला उसे कह कि अब वक्त आ गया ,
उसके भाई के पीछे कोई वानर काल आ गया, 
सेना ने बतलया कैसे रावण सिते हर लाया,,
कैसे उसने लन्का पर संकट के बादल ले आया,
उठते ही उसने गुस्से में सबको हैरान कर डाला,
कौन है वो वानर सेना जिसने लन्का को बैचैन कर डाला,

रावण को प्रणाम कहा फिर उसे खुब समझाया,
वो कोइ और नहीं, तीनों लोक के नारायण है,
न राग, न द्वेश वो गंगा सा पावन है, 
कौन सी आपदा आन पड़ी जो नारायणी हर लाये,
अपने अभिमान वजह से धर्म से मुख मोड. आये,

चूप हो जा कुम्भकर्ण अगर ऐसे ही पाठ पढाना है 

तो जा सो जा चला जा पहले के समान,
नहीं तो तु भी चला जा उस राम के पास 
उस निर्लज विमिषन के समान,

भाई वो नहीं जो धर्म का पाठ पढाये,

भाई वो नहीं जो सच जान कर मुख मोड़ जाये,
भाई वो है जो समस्या में आगे हो जाये, 
भाई वो है जो भाई के लिये जान भी दे जाये 
मैने सपने में भी ये सब कुछ सोचा न था,
मुझे बस अपनी सुर्पनखा का बदला लेना था,

तो उस समय क्यों मौन थे क्यों नहीं बताया,

जैसा आज किया है आपने वैसा क्यों नहीं उठाया,
अब जब तक मैं जीवित हूँ 
आपको छुने की किसी की साहस नहीं,
और जो मुझे कोइ पराजित करदे
ऐसा किसी की ताकत नहीं,

युध्द भुमि पर जा कर हाहाकार मचा डाली,

पल भर में वानर सेना आधी कर डाली,
अब विभिषन खड़ा है सामने नि:हत्था हाथ जोड़े,
और प्रणाम भ्राता कहकर उसका ध्यान तोड़े, 

ऐसी अग्नि में खड़ा हूँ कि जल भी रहा हूँ ,

अन्त हो नहीं रहा और मर भी रहा हूँ, 
कैसे जवाब दुँ मैं तुम्हे की मेरी अवस्था क्या है,
सर्वज्ञानी विभिषण तु बता अब धर्म क्या है?



भ्राता, जो सच है, सनातन है, कर्तव्य है,
जो अपरिवर्तनीय है, जो परम है वो धर्म है,
इसमें न आस्था होती है, न अवस्था होती है,
ये धर्म है, और सिर्फ़ धर्म है,



कुम्भकर्ण के अश्रु उनके गालों की ओर बढ़ गये,
कुछ छण विभिषण को देख मौन हो गये,
धर्म अधर्म उस अवस्था पर निर्भर करती है 
जहाँ तुम खड़े हो,
धर्म वो है जहाँ मैं खड़ा हूँ ,
धर्म वो है जहाँ तुम खड़े हो,

तुम धर्म हो, तुम सत्य हो, तुम राम भी, 
तुम भाई हो, प्रिय मित्र हो और अब शत्रु भी,
बता मुझसे बड़ा कोई अभागी होगा क्या,
हो भाई के लिये भाई के खिलाफ़
उसका कभी उद्धार होगा क्या,

ऐसे खड़े मत रह पगले हमारी क्रोध की शैली बढ़ रही है,
रोक रहा हूँ अपने अश्रु को वो रुक नहीं रही है, 
तु चला जा विभिषण मैं तुम पर वार नहीं कर सकता,
सर्वकूल मिटेगा हमारा मैं तुझ पर वार नहीं कर सकता,

जैसे होती है अन्तिम संस्कार ब्राह्म्णो की
वैसे ही हमारा भी करना,
एक तुम ही शेष रहोगे कूल में,
अपने भ्राता रावण की आज्ञा है प्रिय
मुझे माफ़ करना,

और सुन, जा कह दे हनुमान से, परशुराम से,
आ रहा हूँ मैं,  मेरा अन्त कर दे
इस आभागी दुनिया से मुझे मुक्त कर दे..... 



- Your Ashish Pathak








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