Tuesday, February 11, 2020

गाँव ही मेरा शहर लगता है।



  
 (गाँव ही मेरा शहर लगता है।)
○○○○○○
मुझे क्यूं सफेद कागजों में भी कोई खबर लगता है 
बड़े इमारतों का शुक्रिया गाँव ही मेरा शहर लगता है।
○○○○○○

उससे पुछो स्वाद जिसे मिठास से बिमारी हो गयी
पसंद तो है मगर उसे शक्कर भी जहर लगता है।
○○○○○○

वो पूछते थे बड़े मसक्कत से मुझे कहाँ खोये हो
मैं कहता था कुछ नहीं बस तूझे खोंने से डर लगता है।
○○○○○○

अब कहानी थोड़ी बदल गयी है मेरी जिन्दगी की
बगान था अब दिल कोई कब्रिस्तान का कब्र लगता है।
○○○○○○

नींद लाने में कितनी हाथापाई करता हुँ तकिये से मैं
मुझे तो काली आधी रात भी दोपहर लगता है।
○○○○○○

रंगीन बनाओ वक्त बिताओ जियो वरना कट जायेगी
ये जिन्दगी भी किसी अनजान शहर का सफर लगता है।

Your ashish 

गाँव ही मेरा शहर लगता है।

    (गाँव ही मेरा शहर लगता है।) ○○○○○○ मुझे क्यूं सफेद कागजों में भी कोई खबर लगता है  बड़े इमारतों का शुक्रिया गाँव ही मे...