Bachpan me hi rehna tha
बुझते दिये को रौशन करना था
मुझे बचपन में ही रहना था
वो हकिमों सा इलाज करते रहे
बात यह थी कि मुझे बीमार रहना था
ऊचाईयों के सपने दिखाने लगे सारे
मुझे उसी उंचाई में पतंग उडाना था
दुनिया की सफर करके क्या कर लेता आखिर
बनायी कागज की नाव पर सवार होना था
न साइकिल न खिलौने न दौलत चाहिये थी
मुझे बस प्यारी माँ के आँचल में रोना था